Shafali Verma lifestory: हरियाणा के रोहतक की गलियों से निकली शैफाली वर्मा आज भारतीय महिला क्रिकेट की नई पहचान बन चुकी हैं। नवी मुंबई में हुए महिला वर्ल्ड कप 2025 फाइनल में जब उन्होंने 87 रन ठोके और फिर गेंद से दो विकेट लेकर भारत को पहला खिताब जिताया, तो पूरा देश झूम उठा। लेकिन इस कामयाबी के पीछे एक ऐसी कहानी है जो हिम्मत, जुनून और सपनों पर भरोसा करना सिखाती है।
Shafali Verma lifestory: प्लास्टिक के बल्ले से शुरू हुआ सफर
घनीपुरा निवासी संजीव वर्मा की बेटी शैफाली का क्रिकेट सफर एक प्लास्टिक के बल्ले से शुरू हुआ था। बचपन में गली क्रिकेट खेलते हुए उन्होंने पिता से क्रिकेट के शुरुआती गुर सीखे। पिता पेशे से ज्वेलर्स हैं और बताते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी, लेकिन शैफाली का जुनून कभी कम नहीं हुआ।
संजीव वर्मा याद करते हैं, “जब वह छोटी थी, उसका ध्यान सिर्फ क्रिकेट पर रहता था। हर दिन प्रैक्टिस करती थी। एक बार उसका बल्ला टूट गया तो उसने कहा पापा, इस बल्ले से बॉल बाउंड्री के बाहर नहीं जाएगी। उसी दिन मैं स्कूटर लेकर मेरठ गया और उसके लिए छह नए बल्ले लेकर आया। उसकी आंखों में सिर्फ क्रिकेट था, मैं उसे रोक नहीं सकता था।”
सचिन तेंदुलकर को देख मजबूत हुए सपने
शैफाली का आत्मविश्वास 2013 में तब और बढ़ गया जब उसने अपने आदर्श सचिन तेंदुलकर को लाहली स्टेडियम में रणजी मैच खेलते देखा। उसी दिन उसने तय कर लिया कि उसे क्रिकेटर बनना ही है। वह लड़कों के साथ खेलती थी ताकि अपने खेल में दम ला सके। कोचिंग शुरू करने के बाद उसे अकादमी भेजा गया, जहां उसके खेल में निखार आया।
क्रिकेट के प्रति समर्पण का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि शैफाली ने अपने बाल कटवा लिए थे ताकि खेलते समय कोई ध्यान भटकाने वाली चीज़ न रहे। उसके स्कूल ने बाद में लड़कियों की क्रिकेट टीम बनाई, जिसमें शैफाली ने अहम भूमिका निभाई।
सिर्फ 15 साल की उम्र में टीम इंडिया की टी-20 टीम में जगह पाने वाली शैफाली जून 2021 तक भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे कम उम्र की महिला क्रिकेटर बन गईं। आज जब वह वर्ल्ड कप ट्रॉफी के साथ खड़ी हैं, तो ये सिर्फ उनकी जीत नहीं, बल्कि हर उस सपने की जीत है जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े होते हैं।
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