राहुल द्रविड़ को राजस्थान रॉयल्स ने एक बड़ा रोल ऑफर किया था, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया। सुनने में तो ये पद उन्नति जैसा लगता है, लेकिन असल में इसमें उनके हाथ से टीम से जुड़े अहम फैसले निकल जाते।
उन्हें फ्रेंचाइज़ी के एक ऊपरी ढांचे में लाने की कोशिश की जा रही थी, जहाँ उनकी रणनीति में सीधी भागीदारी कम होती। किसी भी अनुभवी कोच के लिए ये एक संकेत होता है कि अब आपकी बात कम सुनी जाएगी।
कप्तानी को लेकर हुआ मतभेद
संजू सैमसन लंबे समय से टीम का चेहरा रहे हैं, लेकिन पिछले सीज़न में फिटनेस के कारण ज़्यादा मैच नहीं खेल पाए। उनकी जगह रियान पराग को कप्तानी दी गई, जिन्होंने कुछ अच्छे पल ज़रूर दिए, लेकिन लगातार प्रदर्शन में कमी दिखी। टीम में यशस्वी जायसवाल और ध्रुव जुरेल जैसे मजबूत विकल्प मौजूद थे, पर फिर भी रियान को आगे बढ़ाया गया। कहा जा रहा है कि द्रविड़ इस फैसले से सहमत नहीं थे, क्योंकि उनके हिसाब से नेतृत्व का जिम्मा एक ज्यादा अनुभवी और लगातार अच्छा खेलने वाले खिलाड़ी को मिलना चाहिए था।
सिर्फ नाम नहीं, सोच का भी टकराव
राहुल द्रविड़ हमेशा शांत स्वभाव के माने जाते हैं। वो विवादों से दूर रहते हैं और शायद इस बार भी बिना शोर किए अलग हो गए। लेकिन जो लोग टीम के अंदर की बातें जानते हैं, उनका मानना है कि कई फैसले ऐसे लिए जा रहे थे जो द्रविड़ की सोच से मेल नहीं खाते थे। टीम मैनेजमेंट की प्राथमिकताएं और उनकी योजना में फर्क बढ़ता गया। रियान पराग को टीम की उत्तर-पूर्वी फैनबेस को ध्यान में रखकर तरजीह दी गई, क्योंकि वो असम से हैं और गुवाहाटी रॉयल्स की दूसरी होम ग्राउंड है। मगर ऐसा लगता है कि क्रिकेट से जुड़े मूलभूत फैसलों में द्रविड़ की राय को वो तवज्जो नहीं दी जा रही थी, जिसकी उन्हें उम्मीद थी।