Jay Shah Sweet Gesture: भारत की ओपनर Prateeka Rawal ने जब World Cup की शुरुआत की थी, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि उनकी कहानी इतनी Emotional होगी। बेहतरीन फॉर्म में खेल रहीं 25 साल की Prateeka Rawal टूर्नामेंट में भारत की दूसरी सबसे ज्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी रहीं। लेकिन फाइनल से ठीक पहले Ankle की चोट लगने से उन्हें टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा।
फाइनल में जब भारत ने South Africa को 52 रनों से हराकर खिताब जीता, तब पूरी टीम मैदान पर जश्न मना रही थी और Prateeka Rawal Wheelchair पर बैठी मुस्कुरा रही थीं। उस जीत के पल में वो सबके साथ थीं, लेकिन उनके गले में विजेता मेडल नहीं था।
ICC के नियम के मुताबिक, सिर्फ 15 खिलाड़ियों को ही वर्ल्ड कप विजेता मेडल दिया जाता है। चोट के बाद जब प्रतीका की जगह Shefhali Verma को टीम में शामिल किया गया, तो मेडल भी उन्हें मिला जिन्होंने फाइनल में शानदार 87 रन बनाकर Player of the Match का खिताब जीता।
Jay Shah Sweet Gesture : Jay Shah ने बढ़ाया हाथ, पूरी की खिलाड़ी की खुशी

इस कहानी में मोड़ तब आया जब प्रतीका को आखिरकार उनका वर्ल्ड कप मेडल मिल गया। उन्होंने खुद बताया कि यह संभव हुआ ICC चेयरमैन Jay Shah की वजह से। एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में प्रतीका ने कहा,
“Jay Shah ने हमारे टीम मैनेजर को मैसेज किया कि मैं चाहता हूं कि प्रतीका को उसका मेडल मिले। उन्होंने खुद इसकी व्यवस्था की। जब मैंने पहली बार मेडल को हाथ में लिया, तो आंखों में आंसू आ गए। मैं ज़्यादा इमोशनल नहीं होती, लेकिन उस पल का अहसास अलग था।”
उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर फैंस ने जय शाह की सराहना की। लोगों ने कहा कि यह सिर्फ एक मेडल नहीं, बल्कि एक खिलाड़ी के सपने और मेहनत की पहचान है।
टीम के सपोर्ट स्टाफ ने वह मेडल प्रतीका को दिया, और उस पल उन्होंने महसूस किया कि वो फिर से टीम का हिस्सा बन गई हैं। उनकी मुस्कान उस वक्त किसी जीत से कम नहीं थी।
Squad से बाहर फिर भी Medal से मिला सम्मान

प्रतीका की कहानी किसी फिल्म जैसी है शानदार प्रदर्शन, अचानक आई चोट, और फिर भावनाओं से भरी वापसी। बांग्लादेश के खिलाफ ग्रुप स्टेज मैच के दौरान 21वें ओवर में फील्डिंग करते वक्त उनके दाएं पैर में चोट लगी थी। इस चोट ने उनका सपना अधूरा छोड़ दिया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
उन्होंने पूरे टूर्नामेंट में 6 पारियों में 308 रन बनाए, जिसमें एक शतक और एक अर्धशतक शामिल था। उनकी निरंतरता और टीम के लिए जज़्बा इस बात का सबूत है कि असली खिलाड़ी वो नहीं जो सिर्फ मैदान पर चमके, बल्कि वो जो मुश्किल समय में भी टीम का मनोबल बनाए रखे।
भारत की यह जीत प्रतीका की मेहनत के बिना अधूरी होती। भले ही उन्होंने ट्रॉफी अपने हाथों में नहीं उठाई, लेकिन उनका योगदान हर रन और हर जीत के पीछे महसूस किया गया।
प्रतीका रावल का यह अनुभव हमें याद दिलाता है कि खेल सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि इसमें भावनाएं, जज़्बा और इंसानियत भी शामिल होती है। जय शाह का कदम यह दिखाता है कि असली जीत सिर्फ ट्रॉफी नहीं, बल्कि खिलाड़ियों की मेहनत का सम्मान है।






