भारतीय टेस्ट क्रिकेट के भरोसेमंद बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा ने आखिरकार अपने लंबे और शानदार करियर को अलविदा कह दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट में बताया कि उन्होंने भारतीय क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से संन्यास ले लिया है। उन्होंने लिखा कि भारतीय जर्सी पहनना, राष्ट्रगान गाना और हर बार मैदान पर उतरते समय अपना सर्वश्रेष्ठ देना, यह सब उनके लिए शब्दों में बयां करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि जैसे हर अच्छी चीज़ का अंत होता है, वैसे ही अब वक्त आ गया है कि वह इस शानदार सफर को विराम दें।
पुजारा का करियर ऐसा रहा जिसे कभी आंकड़ों से नहीं मापा जा सकता। वो खिलाड़ी थे जो टेस्ट क्रिकेट के असली मायने को समझते थे। जब भी टीम को जरूरत होती, वह आगे आते, नई गेंद का सामना करते, पिच पर टिकते और विपक्षी गेंदबाजों को थकाकर टीम के बाकी बल्लेबाजों के लिए रास्ता आसान कर देते।
विराट कोहली ने भी पुजारा के संन्यास पर एक खास संदेश शेयर किया। उन्होंने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा “Thank you for making my job easier at 4 Pujji. You've had an amazing career. Congratulations and wish you the best for what's ahead. God bless.” यह साफ दिखाता है कि पुजारा के होने से विराट जैसे आक्रामक बल्लेबाज को बाद में आने में कितनी आसानी होती थी।
पुजारा ने अपना इंटरनेशनल डेब्यू साल 2010 में बेंगलुरु में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ किया था। उन्होंने कुल 103 टेस्ट मैच खेले और 7,195 रन बनाए। उनका बल्लेबाजी औसत 43.60 रहा, जिसमें 19 शतक और 35 अर्धशतक शामिल हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर 206 नॉट आउट रहा। वनडे क्रिकेट में उन्होंने 5 मैच खेले और कुल 51 रन बनाए।
टेस्ट क्रिकेट में उन्होंने जो भूमिका निभाई, वो किसी भी आधुनिक बल्लेबाज से अलग थी। तेज गेंदबाजों के सामने डटकर खड़े रहना, गेंद को छोड़ना, डिफेंस करना और समय बिताना — ये सब आसान नहीं होता। लेकिन पुजारा के लिए यही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। उन्होंने कुल 16,217 गेंदों का सामना किया, जो इस दौर में बहुत बड़ी बात है। सिर्फ चार खिलाड़ियों ने उनसे ज्यादा गेंदें खेली हैं।
उनकी बल्लेबाजी में कोई दिखावा नहीं था, न कोई खास स्टाइल। लेकिन उनकी आंखों में एक अलग ही स्थिरता होती थी। वो मैच को अपने अंदाज में चलाते थे। जब वो क्रीज पर होते, तो ऐसा लगता था कि भारत की पारी एक मजबूत नींव पर खड़ी है। उनके आउट होने के बाद ही गेंदबाजों को राहत की सांस मिलती थी।
चेतेश्वर पुजारा ने सिर्फ इंटरनेशनल क्रिकेट में ही नहीं, बल्कि घरेलू क्रिकेट में भी कमाल किया है। उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 21,000 से ज्यादा रन बनाए हैं, जिसमें 66 शतक और 81 अर्धशतक शामिल हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि वो सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाजों में से एक थे।
हालांकि, पुजारा को वैसी विदाई नहीं मिली जैसी कुछ और दिग्गज खिलाड़ियों को मिली थी। न कोई फेयरवेल मैच, न कोई बड़ा इवेंट। लेकिन शायद यही पुजारा की खासियत भी थी उन्होंने जितनी खामोशी से बल्लेबाजी की, उतनी ही शांति से उन्होंने क्रिकेट को अलविदा भी कहा।
उनकी पत्नी ने भी उनके लिए एक खास संदेश लिखा, जिसमें उन्होंने भगवद गीता का ज़िक्र करते हुए कहा कि “Be in the present as the present is the present of the supreme presence” ये सोच उन्होंने अपने जीवन में अपनाई और उम्मीद है कि आगे भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ेंगे।
पुजारा ने क्रिकेट को सिर्फ खेल की तरह नहीं, बल्कि एक साधना की तरह जिया। उनका खेल देख कर समझ में आता था कि क्रिकेट में धैर्य, मेहनत और सादगी की भी उतनी ही अहमियत है जितनी आक्रामकता और ग्लैमर की।
उनका करियर हमें ये सिखाता है कि हर टीम को एक ऐसा खिलाड़ी चाहिए जो मुश्किल वक्त में चुपचाप खड़ा रहे। उन्होंने कभी सुर्खियों में रहने की कोशिश नहीं की, लेकिन जब जब भारत को ज़रूरत पड़ी, पुजारा सबसे पहले डटकर खड़े हुए।
अब जब उन्होंने मैदान छोड़ दिया है, तो उनके जैसे खिलाड़ी की कमी जरूर खलेगी। लेकिन उनकी यादें, उनका तरीका और उनका योगदान हमेशा भारतीय क्रिकेट में जिंदा रहेगा।
पुजारा ने अपना इंटरनेशनल डेब्यू साल 2010 में बेंगलुरु में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ किया था। उन्होंने कुल 103 टेस्ट मैच खेले और 7,195 रन बनाए। उनका बल्लेबाजी औसत 43.60 रहा, जिसमें 19 शतक और 35 अर्धशतक शामिल हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर 206 नॉट आउट रहा। वनडे क्रिकेट में उन्होंने 5 मैच खेले और कुल 51 रन बनाए।
टेस्ट क्रिकेट में उन्होंने जो भूमिका निभाई, वो किसी भी आधुनिक बल्लेबाज से अलग थी। तेज गेंदबाजों के सामने डटकर खड़े रहना, गेंद को छोड़ना, डिफेंस करना और समय बिताना — ये सब आसान नहीं होता। लेकिन पुजारा के लिए यही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। उन्होंने कुल 16,217 गेंदों का सामना किया, जो इस दौर में बहुत बड़ी बात है। सिर्फ चार खिलाड़ियों ने उनसे ज्यादा गेंदें खेली हैं।
उनकी बल्लेबाजी में कोई दिखावा नहीं था, न कोई खास स्टाइल। लेकिन उनकी आंखों में एक अलग ही स्थिरता होती थी। वो मैच को अपने अंदाज में चलाते थे। जब वो क्रीज पर होते, तो ऐसा लगता था कि भारत की पारी एक मजबूत नींव पर खड़ी है। उनके आउट होने के बाद ही गेंदबाजों को राहत की सांस मिलती थी।
चेतेश्वर पुजारा ने सिर्फ इंटरनेशनल क्रिकेट में ही नहीं, बल्कि घरेलू क्रिकेट में भी कमाल किया है। उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 21,000 से ज्यादा रन बनाए हैं, जिसमें 66 शतक और 81 अर्धशतक शामिल हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि वो सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाजों में से एक थे।
हालांकि, पुजारा को वैसी विदाई नहीं मिली जैसी कुछ और दिग्गज खिलाड़ियों को मिली थी। न कोई फेयरवेल मैच, न कोई बड़ा इवेंट। लेकिन शायद यही पुजारा की खासियत भी थी उन्होंने जितनी खामोशी से बल्लेबाजी की, उतनी ही शांति से उन्होंने क्रिकेट को अलविदा भी कहा।
उनकी पत्नी ने भी उनके लिए एक खास संदेश लिखा, जिसमें उन्होंने भगवद गीता का ज़िक्र करते हुए कहा कि “Be in the present as the present is the present of the supreme presence” ये सोच उन्होंने अपने जीवन में अपनाई और उम्मीद है कि आगे भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ेंगे।
पुजारा ने क्रिकेट को सिर्फ खेल की तरह नहीं, बल्कि एक साधना की तरह जिया। उनका खेल देख कर समझ में आता था कि क्रिकेट में धैर्य, मेहनत और सादगी की भी उतनी ही अहमियत है जितनी आक्रामकता और ग्लैमर की।
उनका करियर हमें ये सिखाता है कि हर टीम को एक ऐसा खिलाड़ी चाहिए जो मुश्किल वक्त में चुपचाप खड़ा रहे। उन्होंने कभी सुर्खियों में रहने की कोशिश नहीं की, लेकिन जब जब भारत को ज़रूरत पड़ी, पुजारा सबसे पहले डटकर खड़े हुए।
अब जब उन्होंने मैदान छोड़ दिया है, तो उनके जैसे खिलाड़ी की कमी जरूर खलेगी। लेकिन उनकी यादें, उनका तरीका और उनका योगदान हमेशा भारतीय क्रिकेट में जिंदा रहेगा।